Pita Ka Mobile Number By Poonam Shukla
पिता का मोबाइल नंबर
द्वारा : पूनम शुक्ला
प्रकाशक: प्रकाशन संस्थान
प्रथम संस्करण :2023
शीर्षक :-
प्रस्तुत काव्य संग्रह की अमूमन हर कृति स्वयं
कुछ न कुछ विशिष्ठता लिए हुए है, एवं भावनाओं
का स्तरीय प्रवाह परिलक्षित होता है । किन्तु पिता की याद में रचित कृति “पिता का
मोबाइल नंबर” जो की तनिक मार्मिक भी है जिसे पढने के पश्चात भावनाओं के प्रवाह को
रोक पाना असंभव हो जाता है , साथ ही उसे अन्य कविताओं पर प्रमुखता देते हुए पुस्तक का शीर्षक बनाने
हेतु क्यूँ चुना गया इस बात में भी कोई संशय नहीं रह जाता, संभवतः पिता का स्नेह एवं उन से
लगाव भी एक मूल कारण रहा है, उन्हें यह पुस्तक श्रद्धांजली स्वरुप अर्पित करने हेतु ।
यूं भी यह मात्र रचनाकार के स्वविवेक पर आधारित निर्णय ही है की वह अपनी किस रचना को प्रमुखता देना चाहता है एवं क्या शीर्षक पुस्तक हेतु चुनता है , बाहरी किसी का दखल किसी अन्य के अधिकार क्षेत्र में अनाधिकृत चेष्ठा ही होगी ।
रचनाकार :-
पूनम शुक्ला हिंदी साहित्य के क्षेत्र में प्रचार
प्रसार से दूर शांत एवं गंभीरता से
साहित्य सृजन करने वाली स्थापित रचनाकार
हैं । उन्हें किसी परिचय की दरकार नहीं है । विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों, राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न
मासिक एवं त्रैमासिक पत्रिकाओं इत्यादि में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती ही रहती हैं
तथा साझा काव्य संग्रह “सुनो समय जो कहता है’ में भी उनकी रचनाएँ प्रमुखता से प्रकाशित हुयी
हैं।
निज कविता संग्रह “ उन्हीं में पलता रहा प्रेम”
और “सूरज के बीज” प्रबुद्ध पाठकों के काफी
बड़े वर्ग द्वारा पढ़े एवं सराहे गए । पाठक
वर्ग के बीच उनकी रचनाओं की सरलता को काफी पसंद किया जाता है, पाठक वर्ग से प्राप्त इस
प्रतिसाद का मूल एवं एकमात्र कारण उनकी रचनाओं का सामान्य जीवनधारा से जुड़े हुए विषयों पर आम जन की भाषा में
सुन्दरता से रचना सृजित करना ही है।
उनकी
रचनाओं की भाषा सामान्य जन की सरल सहजगम्य भाषा ही है, परन्तु उपयुक्त स्थानों पर सुन्दर किन्तु आसान अलंकारिक
शब्दों का प्रयोग कर कथ्य को और भी आकर्षक बना देनें से भी परहेज़ नहीं किया है ।
भाषा सुन्दर है किन्तु क्लिष्ट नहीं। सुन्दर, लघु एवं सुगठित वाक्य विन्यास
का प्रभाव है कि उनका कथ्य सहज ही पाठक के अंतर्मन को छू लेता है एवं वह काव्य का
भरपूर आनंद लेता है।
काव्य की
सरलता में ही उसकी सफलता है । उनकी रचना
को पाठक से जुड़ने में विशेष प्रयास नहीं
करना पड़ता।
भाव एवं भाषा शैली :
मूलतः भाव प्रधान रचनाएँ
हैं । विचार बेहद स्पष्ट हैं, एवं अभिव्यक्ति सरल किन्तु किसी विषय विशेष पर केन्द्रित नहीं है। फिर भी नारी
मन के भाव को सशक्त आवाज़ देने हेतु उनकी
लेखनी प्रमुखता से उठी है । उनके कवित्त
में विचारों की मौलिकता, एवं तथ्य परक पैनी दृष्टि का
स्पष्ट आभास होता है।
उनकी सहज भाव अभिव्यक्ति किसी भी तरह के बन्धनों
से मुक्त है। विचारो के प्रकटीकरण हेतु
उन्होंने स्पष्टता एवं विचारों की मौलिकता
पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है उनके लिए वाक्य विन्यास अथवा अलंकरण से काव्य की सुन्दरता
बहुत मायने रखती प्रतीत नहीं होती ।
भावना का सैलाब वैसा ही कागज़ पर प्रस्तुत हुआ है जैसा की कवियत्री के
ह्रदय में उत्त्पन्न हुआ है वह अपने मूल रूप में विद्यमान है किसी प्रकार से कथ्य के प्रस्तुतीकरण को आकर्षक बनाने का प्रयास अथवा
अलंकारिक शैली का प्रयोग नहीं दीखता ।
विचारो एवं भावनाओं को मात्र
अभिव्यक्ति हेतु शब्द दे दिए है , भाषा सौम्य सरल एवं आम जन की भाषा है और आम बोलचाल की भाषा में ही तुकबंदी
से दूर रहते हुए अपनी बात कह दी है ,
इस कारण से विचार
भी सहज ही ह्रदय गम्य है ,
विचारों में स्पष्टता ही एक उत्तम रचना का आधार होती है कहीं
कोई विचलन अथवा भटकाव नहीं दृष्टिगत होता।
सामिक्ष्य पुस्तक से:
“यथार्थ की स्वीकृति के
बाद “: समाज में व्याप्त पुत्र
की चाहत के फलस्वरूप निरंतर प्रताड़ना ,कष्ट एवं भिन्न भिन्न
तरह के अभिशाप झेलने को बाध्य हुई नारी की व्यथा कथा सुनाती कविता है जो सिर्फ
कष्टप्रद जीवन बिताने हेतु बाध्य है
क्योंकि उसने सिर्फ लड़कियों को जन्म दिया
आज की नारी, अब प्राचीन
रूढ़िवादी मान्यता को तोड़ते हुए सात ज़न्मों के बंधन को अस्वीकारती है और सभी
जंजीरों को तोड़ देना चाहती है। तमाम मुश्किलों के बावजूद उसे अब इस सब से बंधनमुक्त हो कर जीने की आरज़ू है । कुछ यही विचार दर्शाती
है कविता
“मुक्ति के लिए”:-
नहीं चाहिए हमें / सात जन्मों का बंधन
हम हो जाना चाहती हैं अब बंधनमुक्त
इसी जन्म में उतार देना चाहती हैं / तुम्हारे
सारे क़र्ज़
इसीलिए तो हम चलती हैं / सुबह से रात तक
तुम्हारे मूर्तिवत बने रहने के बावजूद
आसमान फटने तक के तुम्हारे लम्बे इंतज़ार के
अपूर्व धैर्य के बावजूद / हम चलती हैं ,चलती
जाती हैं
इसी जन्म में तुमसे मुक्ति के लिए ।
“ अशोक का पेड़” :-
हिन्दू धर्म में अशोक वृक्ष को बहूत
ही पवित्र और लाभकारी माना गया है। अशोक का शब्दिक अर्थ होता है-
किसी भी प्रकार का शोक न होना। मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों में अशोक के पत्तों का
प्रयोग किया जाता है।
माना जाता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या
इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती
है किन्तु एक अन्य अल्प प्रचलित मान्यता के अनुसार लंका में अशोक वाटिका के
होने को भी लंका के विनाश का कारण माना जाता है । इसी धारणा को मूल में रख कर
दृश्य प्रस्तुत किया है ।
अशोक वृक्ष जो घर का मानो एक सदस्य ही तो था हर सुख
दुःख का साक्षी , उस से सभी का लगाव अभिन्न एवं
अवर्णनीय था । उस अशोक के वृक्ष को को इस धारणा के कारण काट दिए जाने के बाद उत्त्पन्न हुए भाव अभिव्यक्त करती है कविता । चंद पंक्तियाँ उधृत कर रहा हूँ ।
मैंने उसे कटते हुए नहीं देखा था
पर जब देखा था / तब दुआर पर सन्नाटा पसरा था
मैंने वहां की मिटटी को अशोक के न रहने पर
शोक में डूबे हुए देखा था / मैंने वहां के जीवन
को
अपनी साँसें रोके हुए / उदासी के ताल में डूबे
हुए देखा था
वह अशोक का पेड़
अब भी आता है मेरे ख्वाबों में
प्रश्न पूछता है की आखिर क्यूँ काट दिया गया
उसे
वहीं कविता
“खरा खारा” और “ अंधेरे की बीम “ भी सुन्दर अभिव्यक्ति हैं। तो सुंदर
भाव के संग सुंदर शब्दों का चयन प्रस्तुत
करती है कविता “छुपा रास्ता”:-
हवा सिमटी सकुचाई सी / बैठी है घर के एक कोने
में
एक आवाज़ थोड़ा विषाद लिए घूमती हुई छतों की ओर
ताकती है
फूलों की सुगंध हँसना भूल / भूतकाल
का पता मांगती है
उबड़ खाबड़ रास्तों की चुम्बक / अपनी
गरिमामयी अवस्था मे
बढ़ते पांवों को अपनी ओर पूरी तरह खींचती है
पीड़ा की लहरें उठती हैं बार बार / अनछुए दृश्य
भागते हैं तेजी से दूर
पलटकर कनखियों से / देखते हैं मेरे चेहरे का
उदय हुआ रंग
सारे रंग गड्डमड्ड एक दूसरे से गूंथे हुए
मनपसंद दृष्यों पर बदरंग चादर ताने हुए । ।
वहीं अपनी जड़ों से फिर जुड़ने और लुट चुकी प्राकृतिक विरासत को फिर
संजो लेने का संदेश देती है
“पीछे छूट गए शहर”
पीछे छूट गए शहर / बार बार पीछे से
देते हैं आवाज़
दरअसल वे देखना चाहते हैं / हमारे
पीछे मुड़कर देखना
हमारा उनकी जड़ों से जुड़े रहना ।
गांवों के बदलते स्वरूप को , उनके
शहरीकरण को , उस दर्द को बयां करती हैं
“इस बार बदला हुआ था गांव’
मिट्टी के गायब हो चुके थे घर
कच्ची ज़मीनें सख्त हो पक्की बन गयी थीं
अब शहर गांव में प्रवेश कर चुका था
साथ ही प्रवेश कर चुका था तेरा मेरा
प्रवेश जार चुकी थी अपने हिस्से की बेचैनी
हवा में कुछ कड़वाहट प्रवेश कर चुकी थी । ।
इस कथा संग्रह की शीर्षक कविता जो अपने विशिष्ठ भाव एवं सहज अभिव्यक्ति हेतु बरबस
आकृष्ट करती है :
“पिता का मोबाइल नंबर’
एक जादुई
नंबर सा था पिता का मोबाइल नंबर
पिता की आव जीवन के प्रति प्रेम और उल्लास से
भरी हुई
माँ कहती अपने दुख अपनी व्यथा कथा कह जाती
तभी पिता की आवाज़ उस व्यथा को काटती
कोई खुशखबरी सुनाओ
कोई अच्छी बात बताओ
अब बस एक सुनसान सी रात है
जहां माँ चाँद सी और पिता तारे से दिखते हैं
अब न पिता की आवाज़ आती है ना माँ की
वहीं स्त्री विमर्श पर
आधरित चंद कविताओं को एक अलग ही खंड” वे पालती हैं शांति के कबूतर” में एकत्र कर दिया है ।
नारी पर सदियों से हो रहे सितम का उसकी
स्वतंत्रता पर अंकुशों का उसके दिल में घर कर चुके डर का एक तंज़ के साथ चित्रण है कविता “एक स्त्री का डर”
वे सिहरती हैं तानाशाहों की आवाज़ पर
वे सहमति हैं बच्चों की चीख पुकार पर
वे जाली कतई सुनते हुए भी जलने नहीं देती रोटी
वे तीखी आवाज़ों के बीच कुछ मीठा परोसती हैं।
वहीं अपने छोटे छोटे अरमान पूरे करने के लिए भी
स्त्री को कैसे कैसे और कितने ख्वाब बुनने होते हैं और उन
ख्वाबों को जी लेने के पहले की खुशी दिखती
है
“आज
एक स्त्री अकेली है” में
इसी संग्रह से बेहद सुंदर भाव के साथ एक और
कविता है “उदासी’ ।
उदासी सोया हुआ पत्थर है / उदासी की पीठ पर भले ही
हंसी की
गिलहरियां कूदती हों / उसकी पीठ में सिहरन
नहीं होती
तुम और एकांत भी कुछ विशिष्ठ भाव लिए एक
सुन्दर रचना है
इस के सुंदर भाव देखें कि
तुम और एकांत / पर्यायवाची शब्द तो नहीं
फिर कैसे खड़े हो जाते हैं दोनों आमने सामने
ज्यों आईने में खड़ा / कोई
निहार रहा हो
अपना ही प्रतिविम्ब।
संग्रह
की हर कविता कुछ कहती है, कुछ अलग मिजाज़ लिए हुए मानो हर भाव को हर एहसास को हर अनुभव को शब्दों
में पिरोने का प्रयास है , उनकी कविताओं से, कविता के प्रति कवियत्री की ईमानदारी और दिल की सच्चाई प्रगट होती है।
सुन्दर एवं भावनात्मक अभिव्यक्ति है।
समीक्षात्मक टिप्पणी :-
·
सहज , सरल भावनाओं की अभिव्यक्ति है , व क्लिष्टता तथा काव्य के व्यर्थ
अलंकरण से बचा गया है।
·
भाव , सहज प्रवाह में सरल एवं अपने स्वाभाविक रूप में
विद्यमान है।
·
सरल भाषा एवं बोधगम्य शैली में रचित सुन्दर काव्य संग्रह है ।
·
कवितायेँ अपने इर्द गिर्द की पृष्ठभूमि पर , अपने आस पास की घटनाओं पर
केन्द्रित हैं ।
·
पठनीय , पुस्तक है जो भावनाओं को सहलाते
हुए गुज़रती है परन्तु कहीं न कहीं कुछ कुछ विषय विचरण हेतु भी सौंप जाती है।
सविनय ,
अतुल्य
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